दिनांक: 27 जून 2025 | समय: शाम 4 बजे (IST)
आयोजक: International Democratic Rights Foundation (IDRF)
अमेरिका के भीतर मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर वैश्विक चिंता, विशेषज्ञों ने उठाए सख्त सवाल
आज 27 जून 2025 को अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक अधिकार फाउंडेशन (IDRF) द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण वेबिनार में अमेरिका में संस्थागत नस्लवाद और पुलिस बर्बरता को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए। कार्यक्रम की शुरुआत IDRF के निदेशक डॉ. फ़ैज़ुल हसन ने की, जिन्होंने अमेरिका के ऐतिहासिक नस्लीय अन्याय पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1525 से 1866 के बीच 1.25 करोड़ अफ्रीकी लोगों को जबरन गुलाम बनाकर अमेरिका ले जाया गया, जिनमें से 10.7 मिलियन ही यात्रा में जीवित रह पाए। द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ने वाले अफ्रीकी-अमेरिकी सैनिकों को भी देश लौटने पर दोयम दर्जे का नागरिक माना गया। यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका में नस्लीय भेदभाव और पुलिस हिंसा ऐतिहासिक रूप से जड़ें जमाए हुए हैं।
मुख्य वक्ता डॉ. टिम एंडरसन, जो सिडनी स्थित Centre for Counter Hegemonic Studies के निदेशक हैं, ने अमेरिका में साम्राज्यवाद, नस्लीय असमानता और कैद व्यवस्था पर आलोचनात्मक टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "अमेरिका की साम्राज्यवादी भाषा बहुत परिष्कृत है। वे 'स्वतंत्रता' और 'न्याय' जैसे शब्दों का प्रयोग कर औपनिवेशिक कार्रवाई को ढंकते हैं।"
डॉ. एंडरसन ने यह भी बताया कि अमेरिका में दुनिया की सबसे बड़ी जेल आबादी है, जहां अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय मात्र 13.4% होते हुए भी कैदियों में 40% तक हैं। उन्होंने 2000 में हुए 2100 गिरफ्तारी-से-जुड़े मौतों की ओर इशारा किया और बताया कि सबसे अधिक मृत्यु दर 20-34 आयु वर्ग के अश्वेत युवाओं में है।
भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता फिरोज़ मिथीबोरवाला ने कहा कि आज ग़ज़ा में जो कुछ हो रहा है, वह अमेरिका समर्थित इज़रायली नरसंहार है। उन्होंने कहा, "असली सेमिटिक लोग फिलिस्तीन, सीरिया और लेबनान के मूल निवासी हैं। ‘एंटी-सिमिटिज़्म’ शब्द आज एक भ्रामक औजार बन गया है जो आलोचना को दबाने के लिए इस्तेमाल होता है।"
उन्होंने यह भी कहा कि आज दुनिया मान रही है कि ग़ज़ा में जो हो रहा है वह शायद जर्मनी में यहूदियों पर हुए अत्याचार से भी अधिक क्रूर है।
प्रमुख आंकड़े और निष्कर्ष:
2024 में पुलिस द्वारा 1,365 लोगों की हत्या यह अब तक का सबसे ऊँचा आंकड़ा है।
2024 में केवल 10 दिन ऐसे थे जब किसी की पुलिस द्वारा हत्या नहीं हुई।
2024 अक्टूबर तक 207 अश्वेत नागरिकों की पुलिस फायरिंग में मौत।
2013–2023 के बीच केवल 1.9% पुलिस हत्याओं में आरोप तय हुए।
प्रीटेक्स्टुअल ट्रैफिक स्टॉप जैसी नीतियाँ नस्लीय पूर्वाग्रह को संस्थागत बनाती हैं।
वेबिनार में यह भी बताया गया कि किस प्रकार DOJ (अमेरिकी न्याय विभाग) की जाँच में मेम्फिस और वॉर्सेस्टर जैसे शहरों की पुलिस व्यवस्था में व्यापक अधिकारों का उल्लंघन सामने आया – जिसमें गैरकानूनी धर-पकड़, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमला और मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे नागरिकों पर बल प्रयोग शामिल है।
महत्वपूर्ण प्रश्न जो चर्चा में उभरे:
1. क्या यह मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है जब संघीय एजेंसियाँ बिना पहचान उजागर किए मास्क पहनकर छापे मारती हैं या भीड़ नियंत्रण करती हैं?
2. पुलिस हिंसा का मानसिक स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और जवाबदेही पर क्या प्रभाव पड़ता है?
3. अमेरिका में बाइडन से ट्रंप की सत्ता वापसी जैसी राजनीतिक अदल-बदल से स्थानीय पुलिस सुधारों की निरंतरता पर क्या प्रभाव होगा?
निष्कर्ष:
यह वेबिनार अमेरिका में मानवाधिकारों की वास्तविक स्थिति को उजागर करने का प्रयास था। वक्ताओं ने सामूहिक रूप से मांग की कि अमेरिका को अपनी आंतरिक प्रणाली में गहरे नस्लीय भेदभाव और पुलिस हिंसा की जांच कर, जवाबदेही और न्याय को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इन मुद्दों पर अमेरिका को जवाबदेह ठहराने के लिए दबाव बनाना चाहिए।
ब्यूरो रिपोर्ट
मोहम्मद अरमान रजा कादरी
मंडल ब्यूरो चीफ देवी पाटन गोंडा