ग्लोबल संस्थाओं की गिरती विश्वसनीयता: वॉचडॉग से बाईस्टैंडर तक" विषय पर आयोजित वेबिनार में अंतरराष्ट्रीय दोहरे मापदंडों की कड़ी आलोचना

 प्रेस विज्ञप्ति

दिनांक: 20 जून 2025

स्थान: नई दिल्ली



इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक राइट्स फाउंडेशन (IDRF) द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण वेबिनार "From Watchdogs to Bystanders: The Declining Effectiveness of Global Institutions" में बोलते हुए जाने-माने अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रो. आफताब कमाल पाशा ने वैश्विक संस्थाओं की गिरती साख और पश्चिमी देशों की दोहरी नीतियों को कड़े शब्दों में आड़े हाथों लिया।

प्रो. पाशा ने कहा कि जब चीन या रूस जैसे देशों में मानवाधिकार उल्लंघन की खबरें आती हैं तो अमेरिका और उसके सहयोगी देश तुरंत निंदा प्रस्ताव पास करते हैं, तख्तापलट की कोशिशें होती हैं। परन्तु जब बात इस्राएल की आती है, जो वर्षों से फ़लस्तीन और ग़ज़ा में मानवता के विरुद्ध अपराध कर रहा है, या अमेरिका द्वारा अफग़ानिस्तान, इराक, यमन, सीरिया, लीबिया, सोमालिया और लैटिन अमेरिका में किए गए अत्याचारों की होती है, तब कोई सज़ा नहीं दी जाती, कोई प्रतिबंध नहीं लगता।

प्रो. पाशा ने G-7 द्वारा पारित हालिया प्रस्ताव का भी जिक्र किया जिसमें इस्राएल के 'डिफेंस अधिकार' को तो मान्यता दी गई, लेकिन ईरान को न्यूक्लियर हथियार न बनाने देने की सख्त चेतावनी दी गई। उन्होंने इसे पश्चिमी देशों की खुली दोहरी मानसिकता और साम्राज्यवादी रवैये का प्रतीक बताया।

उन्होंने कहा कि पश्चिमी ताकतें यह मानकर चलती हैं कि चूंकि मानवाधिकार संगठनों की स्थापना उन्होंने की है, इसलिए वे उन्हें अपनी इच्छानुसार चलाएंगी।

 इस समय जिन भूभागों पर इस्राएल क़ब्ज़ा जमाए हुए है, वे मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन और पवित्र भू-भाग हैं, जहाँ से यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई। इसके बावजूद वहां की जनता को रोटी तक नसीब नहीं हो रही, महिलाएं और बच्चे तक सुरक्षित नहीं हैं, और इन अपराधों पर न कोई अंतरराष्ट्रीय निंदा होती है, न कोई जवाबदेही तय की जाती है।

प्रो. पाशा ने खुलासा किया कि ग़ज़ा में इस्राएल द्वारा अब तक 280 पत्रकारों की हत्या कर दी गई है। “अगर इतनी संख्या में किसी और देश ने पत्रकारों को मारा होता तो दुनिया भर में बवाल मच जाता, लेकिन यहां चुप्पी छाई हुई है। यही पश्चिम की पाखंडी नीतियों का सबूत है”।


प्रोग्राम का संचालन करते हुए IDRF के निदेशक डॉ. फैज़ुल हसन ने कहा कि यह समय मानवता के इतिहास का सबसे दुःखद दौर है, जहां वेस्टर्न पावर्स अपनी दादागिरी थोप रही हैं। “इस्राएल द्वारा ईरान पर हमला करके वहां के राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और सैन्य अधिकारियों की हत्या कर दी जाती है, लेकिन कोई प्रतिबंध नहीं लगता, उल्टा G-7 ईरान के खिलाफ प्रस्ताव पास कर देता है"।


उन्होंने यह भी जोड़ा कि वेस्ट देश दो हिस्सों में दुनिया को बाँट चुके हैं एक जो उनके साथ हैं, और दूसरे जिन पर प्रतिबंध और हमले थोपे जाते हैं। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान, इराक, लीबिया और सीरिया जैसे उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों पर दशकों से जो ज़ुल्म हो रहे हैं, उन पर कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था सख्त कदम नहीं उठा पाई, क्योंकि वीटो पावर और राजनीतिक प्रभाव के आगे सारी संस्थाएँ ‘भीगी बिल्ली’ बन चुकी हैं।


IDRF ने इस वेबिनार के माध्यम से मांग की है कि


1. सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की संरचना और संचालन पर पुनर्विचार किया जाए।

2. मानवाधिकार के मापदंड सभी देशों पर समान रूप से लागू हों।

3. ग़ज़ा, फ़लस्तीन और अन्य संघर्ष क्षेत्रों में हो रहे युद्ध अपराधों पर निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई हो।

यह कार्यक्रम इस बात का प्रतीक बना कि अब वक्त आ गया है कि दुनिया केवल ताकतवर देशों की नहीं, बल्कि न्याय और मानवता की आवाज़ को भी सुने।


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:

डॉ. फैज़ुल हसन

निदेशक, IDRF

ईमेल: faizul.khan02@gmail.com

फोन: +91-9319211419

ब्यूरो रिपोर्ट 

मोहम्मद अरमान रजा कादरी 

मंडल ब्यूरो चीफ देवी पाटन गोंडा 

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